यह भजन रामचरितमानस के अयोध्या कांड के दोहा
श्री गुरु चरण सरोज रज निज मन मुकुर सुधारी ।।
वर्णों रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि ।।
के बाद है जिसे इस वीडियो में Gokul कुमार झा के द्वारा गाया गया है
जब ते राम ब्याहि घर आए । नित नव मंगल मोद बधाई ।। agar aapka yah video Pasand Aaye To like share and SUBSCRIBE kar le
धन्यवाद
जब ते राम ब्याह घर आए नित नव मंगल मोद बधाई
॥चौपाई ॥
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥ (१)
भावार्थ:- जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आये हैं, तब से अयोध्या में नित्य नए मंगल गान हो रहे हैं। चौदह भवन रूपी बड़े भारी खण्ड शिलाओं पर पवित्र बादल आनन्द रूपी जल की बर्षा कर रहे हैं। (१)
रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई। उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती। सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥ (२)
भावार्थ:- ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़ कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं हैं। नगर के स्त्री-पुरुष शुभ वर्ण के मणियों के समूह के समान हैं, जो सभी प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं। (२)
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती। जनु एतनिअ बिरंचि करतूती॥
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी॥ (३)
भावार्थ:- अयोध्या नगरी का ऐश्वर्य का वर्णान ही नहीं किया जा सकता है, ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्मा जी की कारीगरी बस इतनी ही है। श्रीरामचन्द्र जी के मुखचन्द्र की छटा देखकर सभी नगरवासी हर प्रकार से सुख की अनुभूति कर रहे हैं। (३)
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली॥
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ। प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ॥ (४)
भावार्थ:- सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फलित होती हुई देखकर आनंदित हो रही हैं। श्रीरामचन्द्र जी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथ जी अत्यधिक आनंदित हो रहे हैं। (४)